लेखनी कहानी -24-Nov-2022 (यादों के झरोखे से :-भाग 3)
आज मैं मेरे चाचा की शादी की एल्बम देख रही थी। जब उनकी शादी हुई थी, उस समय में मात्र 3 वर्ष की थी। चाचा की सबसे लाड़ली भतीजी। जब वे घोड़ी पर बैठे निकासी निकालते समय, तब मुझे भी उन्होंने अपने साथ बैठाया। उस समय एक छोटी नन्ही सी राजकुमारी जैसा कुछ एहसास हो रहा था। बाकी बच्चों का तो नंबर ही नहीं आने दिया था मैंने। मैं घोड़ी से नीचे उतरने को तैयार ही नहीं थी। मुझे तो पूरा शहर घूमना था घोड़ी पर। यू समय मैंने लाल रंग का चुन्नी बेस पहना हुआ था। लाल रंग वैसे मेरा मनपसंद तो है ही। साथ ही साथ वह मुझे खिलता भी बहुत है।
मुझे याद है उस चुन्नी बेस की कहानी। मेरी अम्मा जब गांव (करौली) जाती थीं, अब तो वह जिला बन चुका है। तो वहां पर जो कैला मैया का मंदिर है, वहां के पुजारिजी उनकी पहचान वाले थे। अम्मा को वे मातारानी की पहनाई गई चुनर बेस दे देते थे, यह कहकर कि यदि आपके घर में कोई छोटी कन्या हो तो उसे पहना दीजिएगा। वह चुनर बेस अम्मा मुझे पहना देती थीं। अतः वही चुनर बेस मैंने चाचा की शादी में पहना था। वह मेरा सबसे पसंदीदा बेस हुआ करता था।
जब भी मेरी बुआ का दिल करता, वो मुझे वह चुनर बेस पहना देती और गाने चला देती। मुझे बचपन से ही नृत्य का भी शौक था। मैं उनके बजाए गानों पर थिरकने लगती। उनको बड़ा मज़ा आता था, जब छोटी सी मैं लहंगा बेस में थिरकती थी। फिर जब भी नानी के घर जाती तो वहां भी, जो बड़े दीदी और भैया थे मुझे खूब नृत्य करवाते थे। दूसरी बुआओं के घर जाती तब भी यही होता। मुझमें नृत्य का शौक इन्हीं लोगों के कारण पैदा हो गया। फिर सबसे हौसला अफजाई मिलती तो किसे बुरा लगेगा। बच्चे तो ऐसे ही होते हैं। उनको थोड़ा पूनर्बलन दो, तो बस बेहतरीन प्रदर्शन करते चले जाते हैं।
जैसे मैं अम्मा की लाड़ली थी, वैसे ही नानी की भी आंखों का तारा थी। मुझे बचपन से ही दाल चावल बेहद पसंद थे। यह बात मेरी नानी को मालूम थी। सबके लिए चाहे जो बने, लेकिन मेरे लिए मेरी नानी दाल चावल ज़रूर बनवाती। अगर मैं कहीं लुक छुप जाऊं तो मुझे ढूंढने लगती। मेरी मां से मेरे बारे में पूछतीं। मेरी अम्मा और नानी भी मुझे बहुत ही प्यारी थीं। दोनों के ही हाथों से बने दाल चावल मुझे अमृत समान लगते थे। पिताजी या माताजी मुझे डांट दें, तो मैं इन्हीं दोनों का सहारा अपने बचाव हेतु लेती। अम्मा मुझे शुरू से ही भाग्यशाली मानती थीं, तो जब सुबह उठती सबसे पहले मेरा चेहरा देखती फिर कमरे से बाहर निकलती। अगर कभी मैं उनसे दूर सोई होती तो आंख बंद करके वहां तक आती, परंतु मेरा चेहरे देखे बिना आंखें नहीं खोलती थीं।
अब अम्मा और नानी तो नहीं हैं, परंतु उनकी खट्टी मीठी यादें अब भी मेरे साथ हैं।
डॉ. रामबली मिश्र
25-Nov-2022 07:21 PM
👏👌
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Swati Sharma
25-Nov-2022 09:59 PM
🙏🏻🙏🏻
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